Saturday, October 4, 2025

VY Travelogue? A Time Machine? 25

 Update Else "Goonism"?

अपडेट नहीं करोगे तो, वाले गुंडे?

पहले भी ऐसी सी कोई पोस्ट पढ़ी होगी आपने? हर अपडेट हर किसी के लिए जरुरी नहीं होता। कंपनियों या कहो की बाजार द्वारा किए गए कुछ अपडेट तो ऐसे जबरदस्ती थोंपे होते हैं की किसी भी प्रोडक्ट को प्रयोग करने से पहले आपको उन्हें डिलीट करना पड़ता है। जैसे कितने तो ऐसे Apps या अपडेट तो आपके मोबाइल या लैपटॉप पर ही होते हैं। 

आपने कोई भी सामान लिया हो, किसी भी ब्रांड का, उसके कितने ही अपडेट या नए उत्पाद साल दो साल के अंदर ही बाजार में आ जाते होंगे? तो क्या आप अपना खरीदा हुआ फ्रीज, ए.सी., माइक्रोवेव, वॉशिंग, कार, मकान आदि चलता कर नया ले आते हैं? नहीं ना? बाजार तो बाजार है। कंपनियाँ अगर, नए-नए उत्पाद बाजार में नहीं निकालेंगी, तो उनका मुनाफा कैसे बढ़ेगा? किसी भी बहाने, उन्हें तो नए उत्पाद बाजार में लाने हैं और उन्हें बेचने के लिए आपको ललचाना भी है। तो क्या आप कुछ भी नया आते ही बाजार की तरफ भाग लेंगे? नहीं ना? कुछ-कुछ ऐसा ही इस जुआरियों के खेल से समझ आया।  एक आध को छोड़कर ज्यादातर राजनितिक पार्टियाँ इस बाज़ारवाद को किसी न किसी रुप में बढाती चढाती भी मिलेंगी। क्यूँकि, इन पार्टियों को सुना है, पैसा ही ऐसे मिलता है। जिसके पास जितना ज्यादा पैसा, उसकी उतनी ही ज्यादा सीट? ऐसा ही है क्या?


यहाँ तक तो चलो, पैसे की बात है। क्या हो अगर ऐसा ही कुछ आदमियों पर भी लागू होने लग जाए? या हो ही रहा हो? बाजार में कोई उत्पाद आया और उसका कोड, किसी न किसी रुप में फलाना-धमकाना लोगों के कोडों से मिलता है।  वो उत्पाद चला जब तक खूब चला। मगर एक दिन?


एक दिन उसमें कुछ खराबी आ गई? तो क्या उससे मिलते-जुलते लोगों में भी कोई खराबी आ जाएगी? या उसमें खराबी आ गई और उसे आप रिपेयर सैन्टर ले गए और वो ठीक हो गया? ठीक ऐसे ही जैसे इंसान को कुछ हो जाता है तो हम उसे हॉस्पिटल ले जाते हैं और वो ठीक होकर घर आ जाता है? मगर?

मगर क्या हो की उस उत्पाद में खराबी अपने आप ना आई हो? बल्की, किसी ने चालाकी या धूर्तता से की हो? ऐसे ही जैसे, आपके लैपटॉप या मोबाइल में वायरस घुस जाते हैं? आप उसे सर्विस सैन्टर ले गए और? ठीक करने की बजाय उस सर्विस करने वाले ने रिपेयर की बजाय उसे और ख़राब कर दिया? क्या करेंगे? कोई मोबाइल, लैपटॉप, कार वॉशिंग ही तो है? नई ले लेंगे? अगर आपके पास पैसे होंगे तो? नहीं होंगे तो? शायद उसके बिना भी काम चल जाएगा? मगर?

क्या उससे सम्बंधित कोडों वाले इंसानों के बिना भी?

चला लेंगे आप काम? नहीं? वो इंसान आपका अपना भी हो सकता है? या शायद था या थी? और आपको मालूम ही नहीं की ये राजनीतिक पार्टियाँ इंसानों से भी ऐसे खेल रही हैं?

लैपटॉप 1 

मैडम, इसका तो motherboard काम नहीं कर रहा। अब ये नहीं चलेगा। 

लैपटॉप 2  

मैडम, इसका तो motherboard काम नहीं कर रहा। अब ये नहीं चलेगा। 

लैपटॉप 3  

मैडम, इसका तो motherboard काम नहीं कर रहा। अब ये नहीं चलेगा। 

ऐसे ही और भी सामान के साथ होता है। इसी दौरान कहीं किसी प्रोफेसर की सोशल साइट पर पढ़ने को मिलता है की यहाँ वहाँ दुनियाँ भर की छोटी मोटी दूकान हैं जो ये छोटा सा काम बड़े आराम से ठीक कर देते हैं। इन ब्रांड्स के सर्विस सैन्टर की बजाय वहाँ ले जाओ। 

इतनी सी बात? और उस पर कितना बड़ा बाजार?

और कितने सारे लोगों से खिलवाड़? Motherboard? इंसान में motherboard जैसा कुछ होता है क्या? आपके आसपास किस, किसका और कब-कब गया? कोई अंदाजा? अगर लैपटॉप का motherboard कोई छोटी-मोटी दुकान ठीक कर सकती है, उस ब्रांड का शौरूम नहीं। तो इंसानों के motherboard कहाँ ठीक होते होंगे?  

Motherboard की तरह ही और भी कितना कुछ होता है, जो जुर्म में रचे-बसे दिमाग ख़राब कर देते होंगे? उन्हें आप कहाँ ठीक करवाएँगे?    

और कुछ ऐसा बंदोबस्त क्यों ना हो की ठीक करवाने की नौबत ही ना आए? ख़राब ही ना हो?

Like prevention is better than cure?       

आगे पोस्ट्स में ऐसे से ही कुछ उदाहरण, आपके अपने ही आसपास से। 

वैसे आजकल मेरे ब्लॉग्स के साथ ये क्या और कैसी हेराफेरी चल रही है?                         

Wednesday, October 1, 2025

VY-Travelogue? A Time Machine? 24

 Some interesting videos for code-decode

and interesting contaminations and threats 




6 AM Ideal But...
इस खास संदेश की बात आगे कहीं पोस्ट में 

हमारे पहचान पत्रों (IDs) में ही कितना कुछ छुपा होता है ना। 
इतना ध्यान से कहाँ देखते हैं हम?
हमारी अपनी ज़िंदगी का कोई भूत 
और आने वाले भविष्य के खतरे तक?
कहाँ-कहाँ बचना है और कहाँ से निकलना है?
या किधर जाना है और किधर नहीं?  

VY-Travelogue? A Time Machine? 23

 During corona, one day I was so perplexed after watching around so many deaths and some news that I wrote to someone, some email regarding corona. I felt, some answers were there. And read somewhere something like, " Are you OK? Do you know what type of crimes, he has done against you?" 

I had no idea, who did what and most imporantly, why? Beyond corona, it was interesting to read about some crimes. And that way, we can track some interesting science? Science of politics? Or politically infected science? There is one such case study in Campus Crime Series about Ujala-Bharti case. If we look even beyond that then any research topic, at some particular time period is a story about the system of that time. Rather about the political infection in science at that particular time period.

Corona in 2003 or 2004? And then in 2022 or 2023 or 2024 and same people or group of people were again writing some papers or projects on the same disease? Discovered some new strain of the same disease after almost two decade? That's the kind of work our scientists, doctors or professors are doing in their labs? I know people are hard working. They are laborious and might be doing some great work. But this corona time period said something else also. It also talked about some cruelities and raised so many questions about the validity of such papers and projects and their results. Most importantly, the way they become party to this strange kind of politics. And it's true just about any other disease.

When I was getting these messages on youtube videos, you are not alone. i Call on blah, blah number. I was thinking that idea is good. But don't call just me. Call XYZ also on the same stage and let them answer some questions of mine. I am ready to answer anyone's questions, at any stage, anywhere. But not available for some crafted and drafted show.  

One can only wonder, when on the name of testing or reverse engineering, knowledgeable people tried to synthesize something, which as per human nature and changed surrounding, circumstances and experience can never have same results as earlier. Experience matters. Humans evolve with experience. Age matters. People mature with age. Priorties matter. The priority of some teenage cannot be same in later years of life, as surrounding and conditions or even people in that surrounding might not be same. Yes, media culture matters at some particular place and surrounding some person, like some amniotic fluid surrounding some fetus. In media, they call that immersive media? But from my point of view calling that media culture would be better.

Tuesday, September 23, 2025

VY-Travelogue? A Time Machine? 22

 Kidney Stone? 

Gall Bladder Stone? 

Or What?

What happened to her that day?

What kinda pain was that?

How political parties, rather must say agents of political parties, frame diseases or synthesize them in such a perfect (imperfect?) manner?

Most such diseases are automation of system? Or? Highly enforced like lockdown time diseases or deaths during corona? Name any diseases and?

And my memories rushed down the lane, much back, over the years, some familiar faces who are no more, online or offline. Some faces I knew so little about, some faces so familiar? What had happened to them? They were fallen prey to some diseases? Or?

Or they were fallen prey to political parallel case creations?

Mic? Voice? Some student? Or scholar? Voice? Shr Vaani? 9th? Or? Some fever? Could not diagnose? Even when mighties of nearby PGI and far away medicals were around including Dr D.... Chaudhary?

Neo's (Or N D   V?) Mumbai chapter would like to talk about such topics? Or maybe some other channel? We don't, till the time it happens to some of our own? Or it might had happened with some of our own, but we have no idea about that? Because, almost all diseases are system's gift. Some are automatic system gifts and some kinda enforced in different ways? But chintus feel so many other important topics are there for discussion, like cricket? Like India, pakistan useless fights? Like religion, region, cast and other such blah, blah, blah? Or maybe even some muto-hago type or mussa collector type topics?

Sunday, September 21, 2025

VY-Travelogue? A Time Machine? 21

 आपको कोई काम करना है, तो पैसा तो चाहिए। अब पैसा कहाँ से आएगा? आपके पास अपना है, तो बढ़िया है। नहीं है, तो कहाँ से मिलेगा, ये पता होना चाहिए? ऐसा ही?

हकीकत ये है, की अगर कुछ करना चाहो, तो संसाधन तो बहुत हैं दुनियाँ में। तो पैसा भी कहीं न कहीं से आ ही जाएगा। हाँ। अगर आपने दुश्मन बहुत पाल रखे हों, जिस किसी वजह से, जैसे लोगों ने कोई छोटे-मोटे काँड किए हों और आपने ऐसी कोई फाइल बाहर निकाल दी हों? तो हो सकता है की आपके अपने पैसे पर भी ताला हो? वो भी illegal . अब ऐसा तो कोई काम आपने किया नहीं हुआ, की वो लीगल ताला लगा सकें। तो ऐसे में गुंडागर्दी अपने चरम पर हो सकती है। ये तो हुई किसी साधारण इंसान की बात। 

क्या हो, अगर कोई सरकार कहे, की फलाना-धमकाना काम के लिए पैसा नहीं है? तो उसे बोलो, जब पैसा ही नहीं है या कहीं से भी इक्कठा नहीं कर सकते, तो क्यों रस्ते के रोड़े से उन कुर्सियों पर जमे बैठे हो? ऐसे लोगों को रस्ता दो, जो इस काबिल हों। ऐसा ही?

या? कुछ पार्टियों की है मिलीभगत और वो आपस में बाँटकर खा रहे हैं? और जनता का फद्दू काट रहे हैं?

या? ये अम्बानी, अडानी, टाटे, बिरले कोई हों, बात एक ही है। इतना परसेंट तुम्हारा और इतना परसेंट हमारा। जनता जाए भाड़ में? जो ज्यादा चूँ चाँ करें, उनके पीछे गुंडे लगा दो। और ना माने, तो अच्छे से समझा दो, अंजाम क्या-क्या हो सकते हैं? तो ऐसे से विषयों पर अगला इंटरव्यू किसका आ रहा है? रस्ता दिखाने वाले कहाँ हैं वो? कौन कौन सी पार्टी में? अब नौटंकीबाज़ तो सारी ही पार्टियों में बैठे हैं :)                         

Friday, September 19, 2025

VY-Travelogue? A Time Machine? 20

 शिक्षा के लिए या धर्म के लिए उगाही करने वाला समाज, कितना विकसित या पिछड़ा हो सकता है? ऐसा ही, कहीं की राजनीती या राजनितिक पार्टियों पर लागू होता है? इस प्रश्न का जवाब आने वाली पोस्ट्स  में अपने आप मिल सकता है। चाक या पैंसिल से शुरु करें? या पैन या मार्कर से? या स्टाइलस से (स्क्रीन पैन)?   

बच्चों वाले चाक या पैंसिल से शुरु करते हैं, सुना है की जिसमें गलत होने पर, गलती को आसानी से मिटाने की सुविधा भी होती है? ऐसा ही?

लेक्चर थिएटर से शुरु करें या new age स्टूडियो से? या फिर सीधा न्यूज़ रुम चलें? या न्यूज़बुक? अरे! ये न्यूज़ बुक क्या होता है? पीछे, NDTV पर एक बड़ा ही रौचक सा कॉन्सेप्ट सामने आया। जो अचानक से, मेरे यूट्यूब मीडिया को जैसे बदल रहा था। ऐसा क्या खास है इसमें? यूँ लगा जैसे, ये तो मेरे लिए ही personalise कर दिया हो? पर्सनल मेडिसिन जैसा सा कॉन्सेप्ट? नहीं, नहीं, कुछ तो गड़बड़ है। मगर क्या? बड़ाम, बड़ाम, बड़ाम? नहीं। भड़काने वाला है ये तो? वो भी बैकग्राउंड में म्यूजिक तड़के के साथ? वो जैसे भूतों का कोई मंदिर, जहाँ से बड़ी ही अज़ीब सी आवाज़ें आ रही हों? लोग मंदिर जैसी जगहों पर, शांति के लिए जाते हैं या डरने-डराने के लिए? कलटेशवर मायानगरी जैसे? 

आप भी सोच रहे होंगे, की ये शिक्षा की बात करते-करते कहाँ पहुँच गए हम? मैंने भी जब ऐसा-सा प्र्शन किया, तो मेरा यूट्यूब, NDTV के "कच हरी" पहुँचा मिला कहीं? जैसे कह रहा हो, अच्छा, तो वो कॉन्सेप्ट पसंद नहीं आया? तो लो, हम तो आप वाले शब्दों को बच्चों की तरह तोड़-तोड़ कर पढ़ने-पढ़ाने वाले कॉन्सेप्ट पर आ जाते हैं। प्रशांत किशोर और प्रीती चौधरी के India Today के पॉडकास्ट के बाद, चलें? 

NDTV की "कच हरी"?


आप सुनिए इसे। 
आगे कहीं इसके आँकलन पर भी आएँगे।

इसके आगे भी शिक्षा और इससे सम्बंधित विषयों पर चर्चा जारी रहेगी, अलग-अलग माध्यमों से, मीडिया से या उनके प्रोग्रामों के द्वारा, या कुछ नेताओं के खास ऐसे से ही विषयों पर, स्पेशल प्रोग्राम्स के द्वारा। पीछे कहीं पढ़ा की बिहार पे फ़ोकस क्यों, बिहारी हैं क्या आप? तो उसका जवाब है, मैं बिहारी ना सही, लेकिन कोई भी इंसान किसी भी बहाने, अगर ऐसे-ऐसे गरीब राज्यों की बात कर रहा है, तो सुनने में बुराई क्या है? मेट्रो सिटीज़ या उनके आसपास को तो हम रोज ही ना सुनते हैं। वैसे भी मुझे भीड़ से थोड़ा दूर दराज़ जगहों, लोगों, उनकी ज़िंदगियों और  उनके संघषों को जानना या समझना पसंद है।  बड़ाम, बड़ाम से दूर, शांती पसंद लोग हैं हम :)        

कुछ एक ने कहा की आप यूट्यूब के एल्गोरिथ्म्स के जाल में उलझ रहे हैं। पीछे मुझे भी ऐसा सा लगा, की ऐसा कोई खास तरह का प्रोपैगैंडा, मेरे यूट्यूब पर खासकर चल रहा है। अच्छा है इसी बहाने, आम जनता को भी नए युग के टेक्नोलॉजी के जंजालों से भी अवगत कराया जाए। ऐसी-ऐसी टेक्नोलॉजी का प्रचार-प्रसार, आम जनता को भी समझाने के काम आएगा की कैसे मानव रोबॉट बनाने की प्रकिर्या में मीडिया अहम भूमिका निभाता है। वो मीडिया चाहे फिर ऑनलाइन हो या ऑफलाइन। 

VY-Travelogue? A Time Machine? 19

 शराब से या जुए से उगाही करने वाला समाज, कितना विकसित या विकृत हो सकता है?

कहाँ से आया ये प्र्शन? जब पाया की शराब "पीता नहीं, बल्की पीटा है"। आपको किसी को पीटना है या हराना है या ख़त्म करना है, तो कुछ नहीं करना, बस मुफ़्त की नशे की सप्लाई का बंदोबस्त कर दो। और ये किसी भी तरह के नशे पर लागू होता है। क्यूँकि, कोई भी नशा, एक बीमारी है। या कहो की किसी या किन्हीं तरह की कमियों की तरफ इशारा है। जैसे न्यूट्रिशन की कमी से उपजे विकार।  राजनितिक पार्टियाँ, अगर उस बीमारी का सही ईलाज करने की बजाय, उसको बढ़ावा देने लग जाएँ, तो क्या होगा? ऐसा शरीर, ऐसा इंसान या ऐसा समाज तो ख़त्म हो जाएगा। 

कोरोना के बाद जब आप पार्टी को जाना तो लगा ये कौन सी दुनियाँ है? ये पार्टियाँ ठेकों के भरोसे चलती हैं क्या? एक ऐसी पार्टी, जिन्हें अल्टरनेटिव राजनीती की चाहत वाले लोग, पुरानी राजनितिक पार्टियों की बजाय, विकल्प के रुप में देखने लगते हैं? इनके ठेकों के धंधों को देख जैसे ठिठक जाते हैं। कुछ-कुछ ऐसे ही, जैसे, अमेरिकन gun culture से नफ़रत करने लगते हैं? बच क्या गया? धर्मांध की अफ़ीम बाँटने और परोसने वाली पार्टियाँ? जो बँदर बाँट की तरह, दो बिल्लिओं को पास बिठाकर, उनका सबकुछ हड़प जाता है? तो राजनीती या कोई भी राजनितिक पार्टी समाधान नहीं है। बल्की, वो तो अपने आप में समस्या हैं। कुर्सी पाने के लिए कुछ भी करेंगे। 

मगर ऐसा भी नहीं, की किसी भी पार्टी में कुछ भी अच्छा ना हो। कुछ तो होगा ही, जो इतनी जनता इन्हें चाहती है? वैसे भीड़ तो इतनी पागल भी हो सकती है, की वो हिटलर और सद्दाम हुसैन जैसों को, दशकों कुर्सियों पर बिठा दें? शायद नहीं? इसका मतलब मीडिया प्रबंधन जबरदस्त है। क्यूँकि, ऐसे लोग या पार्टियाँ, जो दिखाना और सुनाना चाहते हैं, जनता तक सिर्फ उतना ही पहुँचने देते हैं। और अपने कांड़ों को छुपा जाते हैं। ऐसे में रस्ता क्या हो? वो भी शायद मीडिया और मीडिया प्रबंधन वालों से ही होकर गुजरता होगा?

आम लोगों को हर पार्टी से अपने मतलब का जो कुछ अच्छा है, उसे निकालने की कोशिश करना होना चाहिए। क्यों किसी की खामखाँ की भक्ती हो? क्यूँकि, यहाँ फ़ोकस शिक्षा है, तो जानने की कोशिश करते हैं, की कौन क्या और कितना कर रहा है? क्यूँकि, शिक्षा ही एकमात्र रस्ता है, किसी भी समाज की प्रगति का या पीछे रह जाने का। कहाँ से शुरु करें? पैन, पैंसिल, चाक, मार्कर, बोर्ड, किताब, लैपटॉप, नोटबुक, नैटबुक या न्यूज़बुक से? ये चर्चा का विषय होना चाहिए, हर पार्टी के लिए, हर छोटी-बड़ी कंपनी के लिए, हर तरह के मीडिया के लिए। किसी भी समाज का भविष्य यहीं से आगे बढ़ना है। 

Monday, September 15, 2025

VY-Travelogue? A Time Machine? 18

  Metaphor?

Alligory?

सामान्तर घड़ाईयाँ?

या और भी ऐसे कितने ही नाम हो सकते हैं?

हग-मूत के जाले में उलझे वैज्ञानिकों, राजनितिक पार्टियों और बड़ी-बड़ी अंतर्देशीय कंपनियों द्वारा, अलग-अलग तरह के हथकंडों से सिर्फ आपकी निजी ज़िंदगी में ही नहीं, बल्की inner wear और प्राइवेट पार्ट्स तक घुसी बेहूदगियों के इनके बाज़ारों से थोड़ा परे चलते हैं। मगर कहाँ?

वहाँ, जो जहाँ आपको कम से कम इतना सोचने समझने लायक तो बना ही दे, की आखिर इतना कुछ ये सब दूर बैठे कैसे कर सकते हैं? और क्यों कर रहे हैं? ये सब करके, इन्हें मिल क्या रहा है?    

उसके लिए हमें सिर्फ अपने यहाँ के ही नहीं, बल्की, दुनियाँ के अलग-अलग देशों के शिक्षा तंत्र को समझना होगा। जिससे पता चलेगा की आज भी कुछ देश इतने गरीब और कुछ अमीर क्यों हैं? कुछ इतने शांतिप्रिय और कुछ इतने अशांत या झगड़ालू क्यों हैं? उसकी वजह क्या है? शिक्षा, उसका सिस्टम और उसके तौर तरीके उसमें अहम हैं। दुनियाँ भर की यूनिवर्सिटी की सैर से शुरु किया ये सफर, ऐसा ही कुछ जानते-जानते, जाने क्यों अंग्रेजों के उस हिस्से पर अटक जाता है, जिसने हमें इतने सालों गुलाम रखा। उन्होंने हमें इतने सालों गुलाम क्यों रखा या हमारी ऐसी कौन सी कमजोरियाँ थी, की वो हमें इतने सालों गुलाम रख पाए? आज क्या हम आज़ाद हैं? या आज काले अंग्रेजों के गुलाम हो गए हैं? और ये सफ़ेद अंग्रेज या काले अंग्रेज क्या हैं? इन्हें जानना बहुत जरुरी है क्या?

Sun treated या radiation treated लोग काले हैं और snow treated लोग गोरे? Beyond cast or creed, even scientifically, it is a fact. Story of melanin or human pigment evolution?    

तो कहाँ से शुरु करें? पैन, पैंसिल, चाक, मार्कर, बोर्ड, किताब, लैपटॉप, नोटबुक, नैटबुक या न्यूज़बुक से? ये चर्चा का विषय होना चाहिए, हर पार्टी के लिए, हर छोटी-बड़ी कंपनी के लिए, हर तरह के मीडिया के लिए। किसी भी समाज का भविष्य यहीं से आगे बढ़ता है।    

Sunday, September 14, 2025

VY-Travelogue? A Time Machine? 17

  "Never judge others, you don't know their story." 

Or "Never judge a book by its cover. " 

जिस किसी ने कहा है ये, शायद सही ही कहा होगा?

और आज के वक़्त में तो बहुत जरुरी है, इसे मानना। इसीलिए मैं कहती हूँ की हर इंसान अलग है, और हर केस। पता नहीं कैसे लोग उन्हें "ठीक ऐसे है", कह देते हैं? हाँ, सामान्तर घड़ाई कहना सही है। राजनितिक पार्टियों द्वारा की गई सामान्तर घड़ाइयाँ, और भी सही रहेगा। राजनितिक पार्टियाँ जब सामन्तर घड़ाईयाँ घड़ती हैं, तो क्रूरता के कौन-कौन से दायरे या मानक लाँघ जाती हैं? कोई सीमा नहीं है?  

क्यूँकि, जब हम सामान्तर घड़ाईयोँ की बात करते हैं तो synthesis के componenets और तौर-तरीक़े जानना अपने आपमें बहुत से रहस्योँ से पर्दा उठा जाते हैं। और सतह से पर्दा उठते ही पता चलता है, की यहाँ तो कुछ भी नहीं मिल रहा। और उसके साथ-साथ कितने ही अंतर समझ आने लगते हैं। ठीक ऐसे जैसे, बच्चों को कोई दो तस्वीरें या किरदार पकड़ाकर बोलो, इनमें 10 अंतर या सामानताएँ बतायें। रावण के दस मुँह तक, अलग-अलग तरह के दस आदमी नज़र आएँगे? 

ठीक ऐसे जैसे?

बिमारियों के उदाहरण देकर समझाना, अपने आसपास से ही। चलो थोड़ा सा हिंट मैं दे देती हूँ। 

Skin diseases 

Cancer 

Fibrosis 

ईधर-उधर जब इन बिमारियों को जानने की कोशिश की गई, तो यूँ लगा, की ये सच में बिमारियाँ थी या हैं या घड़ी गई थी या घड़ी गई हैं? मगर कैसे? That process or abrupt or kinda instant doses are interesting factors to know.      

और भी कितनी ही बिमारियाँ, जिनकी कहानी कुछ-कुछ ऐसे ही लगती हैं। Paralysis, eyes infections, fever etc. कोई भी बीमारी का नाम लो और वो शक के दायरे में नज़र आएगी। अब वो शक का दायरा सिर्फ automatic system तक सिमित है या उससे आगे भी, ये जानना अहम हो सकता है।      

VY-Travelogue? A Time Machine? 16

 Hey, who is this guy?   

ये तो? जाना पहचाना सा चेहरा लग रहा है ना?
AI धमाल?
या?
iCall on this number? 

Seriously?
नंबर कोई भी हो सकता है। ये ऐसे ही कोई random नंबर रख दिया है। 

ठीक ऐसे ही, चेहरा कोई भी हो सकता है। मगर आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस से, उसे किसी जैसा या बिल्कुल हूबहू भी दिखाया जा सकता है। आज के दौर में आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस जो कुछ कर रहा है, उसका अंदाजा तक आम इंसान को नहीं है। खासकर, भारत जैसे देशों में। और इससे भी गरीब देशों के तो फिर कहने ही क्या? 

आप जो देख रहे हैं, सुन रहे हैं, समझ रहे हैं, हो सकता है की उसका abc भी सच ना हो। या हो सकता है की हो भी? मगर कितना? ये अहम है। वो कहते हैं ना की information is important but correct information. AI ने कोई जानकारी कितनी सही या गलत है, उसके बीच की लाइन को ही ख़त्म कर दिया है। और वो सिर्फ फोटो या विडियो तक सिमित नहीं है। 

बल्की, उससे आगे एक बहुत बड़ा जहाँ सिंथेटिक बाजार का है। किसी भी या किन्हीं भी विशेषज्ञों के पास जो जानकारी है, उसको तोड़, मरोड़, जोड़ कर उसका कितना भी प्रयोग भी हो सकता है और दुरुपयोग भी। 

जुए की राजनीती वाला ये संसार, उसका प्रयोग करके आपको रोबॉट बना रहा है और दूर, बहुत दूर बैठे आपको अपने निहित स्वार्थों के लिए प्रयोग या दुरुपयोग कर रहा है। कैसे? इसपे आगे काफी पोस्ट होंगी।