Friday, September 19, 2025

VY-Travelogue? A Time Machine? 20

 शिक्षा के लिए या धर्म के लिए उगाही करने वाला समाज, कितना विकसित या पिछड़ा हो सकता है? ऐसा ही, कहीं की राजनीती या राजनितिक पार्टियों पर लागू होता है? इस प्रश्न का जवाब आने वाली पोस्ट्स  में अपने आप मिल सकता है। चाक या पैंसिल से शुरु करें? या पैन या मार्कर से? या स्टाइलस से (स्क्रीन पैन)?   

बच्चों वाले चाक या पैंसिल से शुरु करते हैं, सुना है की जिसमें गलत होने पर, गलती को आसानी से मिटाने की सुविधा भी होती है? ऐसा ही?

लेक्चर थिएटर से शुरु करें या new age स्टूडियो से? या फिर सीधा न्यूज़ रुम चलें? या न्यूज़बुक? अरे! ये न्यूज़ बुक क्या होता है? पीछे, NDTV पर एक बड़ा ही रौचक सा कॉन्सेप्ट सामने आया। जो अचानक से, मेरे यूट्यूब मीडिया को जैसे बदल रहा था। ऐसा क्या खास है इसमें? यूँ लगा जैसे, ये तो मेरे लिए ही personalise कर दिया हो? पर्सनल मेडिसिन जैसा सा कॉन्सेप्ट? नहीं, नहीं, कुछ तो गड़बड़ है। मगर क्या? बड़ाम, बड़ाम, बड़ाम? नहीं। भड़काने वाला है ये तो? वो भी बैकग्राउंड में म्यूजिक तड़के के साथ? वो जैसे भूतों का कोई मंदिर, जहाँ से बड़ी ही अज़ीब सी आवाज़ें आ रही हों? लोग मंदिर जैसी जगहों पर, शांति के लिए जाते हैं या डरने-डराने के लिए? कलटेशवर मायानगरी जैसे? 

आप भी सोच रहे होंगे, की ये शिक्षा की बात करते-करते कहाँ पहुँच गए हम? मैंने भी जब ऐसा-सा प्र्शन किया, तो मेरा यूट्यूब, NDTV के "कच हरी" पहुँचा मिला कहीं? जैसे कह रहा हो, अच्छा, तो वो कॉन्सेप्ट पसंद नहीं आया? तो लो, हम तो आप वाले शब्दों को बच्चों की तरह तोड़-तोड़ कर पढ़ने-पढ़ाने वाले कॉन्सेप्ट पर आ जाते हैं। प्रशांत किशोर और प्रीती चौधरी के India Today के पॉडकास्ट के बाद, चलें? 

NDTV की "कच हरी"?


आप सुनिए इसे। 
आगे कहीं इसके आँकलन पर भी आएँगे।

इसके आगे भी शिक्षा और इससे सम्बंधित विषयों पर चर्चा जारी रहेगी, अलग-अलग माध्यमों से, मीडिया से या उनके प्रोग्रामों के द्वारा, या कुछ नेताओं के खास ऐसे से ही विषयों पर, स्पेशल प्रोग्राम्स के द्वारा। पीछे कहीं पढ़ा की बिहार पे फ़ोकस क्यों, बिहारी हैं क्या आप? तो उसका जवाब है, मैं बिहारी ना सही, लेकिन कोई भी इंसान किसी भी बहाने, अगर ऐसे-ऐसे गरीब राज्यों की बात कर रहा है, तो सुनने में बुराई क्या है? मेट्रो सिटीज़ या उनके आसपास को तो हम रोज ही ना सुनते हैं। वैसे भी मुझे भीड़ से थोड़ा दूर दराज़ जगहों, लोगों, उनकी ज़िंदगियों और  उनके संघषों को जानना या समझना पसंद है।  बड़ाम, बड़ाम से दूर, शांती पसंद लोग हैं हम :)        

कुछ एक ने कहा की आप यूट्यूब के एल्गोरिथ्म्स के जाल में उलझ रहे हैं। पीछे मुझे भी ऐसा सा लगा, की ऐसा कोई खास तरह का प्रोपैगैंडा, मेरे यूट्यूब पर खासकर चल रहा है। अच्छा है इसी बहाने, आम जनता को भी नए युग के टेक्नोलॉजी के जंजालों से भी अवगत कराया जाए। ऐसी-ऐसी टेक्नोलॉजी का प्रचार-प्रसार, आम जनता को भी समझाने के काम आएगा की कैसे मानव रोबॉट बनाने की प्रकिर्या में मीडिया अहम भूमिका निभाता है। वो मीडिया चाहे फिर ऑनलाइन हो या ऑफलाइन। 

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